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अनुभूति में सत्यनारायण सिंह की रचनाएँ-

दोहों में-
आ गया पावन दशहरा
प्रेम दस दोहे
प्रेम दस और दोहे
प्रेम इक्यानवे दोहे

 

गीतों में-
अमर मधुशाला
कहाँ छिपे चितचोर
स्वतंत्रता दिवस पर

क्षणिकाओं में-
क्षण, सुख-दुख, प्रेम, प्रार्थना

संकलन में-
होली - होली की संध्या
      शुभकामना
गुच्छे भर अमलतास - सोनहली के सोनपुष्प
                  जेठ माह की दोपहरी
पिता की तस्वीर - जीवनदाता
ज्योतिपर्व-   आओ ज्योतिपर्व मनाएँ
           दीप का संदेश
           दीप प्रकाश
           दिवाली दोहे
           तेरा मेरा नाता
जग का मेला-
दीदी गौरैया
नया साल- नव वर्ष का स्वागत करें
       - नव वर्ष के हे सृजनहार

 

प्रेम : इक्यानवे दोहे

हरषत मन पिय देख के डरपत मन पिय खोय।
जागत मन पिय बैन सुन प्रेम दसा अस होय।।१।।

प्रेम कहाये कुछ नहीं मधुर स्मृति का गांव।
मन मानस के पटलपर अंकित पिय का नांव।।२।।

जाने पर कह सके नहिं प्रेमी प्रेम का रोग।
लाख छुपाये फिरत पर भेद खोलते लोग।।३।।

रहें दूर मन में बसें पास लगें बहु दूर।
प्रेम का मंतर तोड़ता अंतर का दस्तूर।।४।।

जनम मरन के बीच का सारथ सोई प्रवास।
ढाई आखर प्रेम संग जिसने किया प्रयास।।५।।

रिश्ता नाता प्रेम का बिना छुये जुड़ जाय।
एक जनम की क्या कहें अनत जनम सिरजाय।।६।।

बरन न रसना कर सके नयन खोल दें राज।
बिना कहे व बिन सुने सफल प्रेम अंदाज।।७।।

प्रेम नगर ऐसा नगर जिसका रूप अनूप।
मदन महीप ही राजता नहीं दूसरा भूप।।८।।

अंतर की भाषा समझ प्रेम आस अभिलाष।
उलझे जन जीवन का इक सुलझा परिभाष।।९।।

डगर सुहानी प्रेम की जहॉ ठगी ना होय।
ठगी होय जिस डगर पर प्रेम डगर ना सोय।।१०।।

निस दिन तलफत बिरह में तलफत बारह मास।
प्रेम लगन ऐसी लगन चातक की सी प्यास।।११।।

रास न आये जगत को पिय पियतम की प्रीति।
देखि देखि सब जरत हैं यही जगत की रीति।।१२।।

नियम निराला प्रेम का जिसका उलटा न्याय।
नयन करत अपराध पर मन जॅह बॉधा जाय।।१३।।

तीरथ कीरत प्रेम जग प्रेम ईश वरदान।
पाना खोना प्रेम का दोनों दुर्लभ जान।।१४।।

दो मन अनजाने खिंचे बरबस ही मिल जाये।
अदभुत शक्ती प्रेम की जो जाने सो पाये।।१५।।

सतरंगो में रंगता जीवन का परिधान।
अजब रंगीले प्रेम का जग में ऊॅचा मान।।१६।।

सुंदर सांचा प्रेम का जिसके विविध प्रकार।
निराकार मन को जहॉ मिलता इक आकार।।१७।।

जीवन के हर मोड पर प्रेम प्रेरणा देत।
हित की बात करे सदा बदले कुछ ना लेत।।१८।।

मनोभाव को बांचता प्रेम अबोली बोल।
जात धर्म से परे यह ज्ञानी अजब सखोल।।१९।।

जीवन नीरस प्रेम बिन सूना सारा साज।
रसमय जीवन प्रेम संग ऐसा यह रसराज।।२०।।

अर्थ संकुचित प्रेम नहिं व्यापक इसके भाव।
वह जीवन पूरण कहां जिसमें प्रेम अभाव।।२१।।

निष्ठा अरू विश्वास की धरती जो मिल जाय।
त्याग समर्पण खाद पा प्रेम बाग लहराय।।२२।।

क्या उपमा दूॅ प्रेम को प्रेम प्रेम कहलाय।
यदि उपमा दूॅ प्रेम को प्रेम जूॅठ हो जाय।।२३।।

चंद वदन पिय का निरख नयन शांत हो जात।
हलचल मन सागर करत प्रेम ज्वार सो ज्ञात।।२४।।

निज गहराई खो रहा निज मस्ती में चूर।
प्रेम रूप ना देखता लखे रूहानी नूर।।२५।।

जीवन रूपी ग्रंथ का प्रेम प्रथम अध्याय।
प्रेम पाठ बिन पढे नर जीवन समझ न पाय।।२६।।

प्रेम रूप में ईश का होता साक्षात्कार।
प्रेम ईश से है मिला इक महान उपहार।।२७।।

जीवन प्रात:काल का प्रेम सूर्य कहलाय।
जाके प्रकटत ही तुरत तिमिर निराशा जाय।।२८।।

अदभुत बाजी प्रेम की अजब खेल की रीत।
प्रेम की बाजी में कभी हार होत ना जीत।।२९।।

त्याग समर्पण भाव से प्रेम होत है पुष्ट।
पुष्ट प्रेम संयोग से जीवन हो संतुष्ट।।३०।।

प्रेमदृष्टि की वृष्टि बिन मन मनसिज मुरझाय।
प्रेमदृष्टि इक पडत ही मन मनसिज हरसाय।।३१।।

सुर झंकृत जो होत नहिं मन निकसत नहिं बोल।
खोयी अपने मीत में ऐसी प्रीत अबोल।।३२।।

मन समझत अनयास ही नहीं सिखायी जात।
मधुर भावना प्रेम इक जीवन सहज समात।।३३।।

कभी अचानक शाम को खिले सुनहली धूप।
जीवन में चुपचाप तस खिले प्रेम का रूप।।३४।।

मन कारज में लगत नहिं प्रेम की यह पहचान।
रूप निहारत आरसी हिया पिया कर ध्यान।।३५।।

राह प्रेम की सुखद जिमि कोमल कुस्ुाम समान।
भटका जो इस राह से ताहिं कठिन पाषान।।३६।।

कस्तूरी सम प्रेम नित चहुॅ दिशि करत सुवास।
दुर्लभ लेकिन प्रेम जग बडे भाग सहवास।।३७।।

प्रेम कर्ज सम जानिये जाकी मुक्ति न भाय।
व्याज सवायो चढत सर दिल दरिया कहलाय।।३८।।

मीठी पीडा प्रेम इक करत बहुत है तंग।
उपजत नाहीं अंग यह पीडा प्रेम अनंग।।३९।।

प्रेम एक संगीत है मधुर मनोहर गीत।
जीवन लय भर देत है जगे हिया में प्रीत।।४०।।

ध्यान धारणा प्रेम से प्रेम एक स्वाध्याय।
मिलन अनमिले पिया का दूजा नहीं उपाय।।४१।।

चाहत नहि सम्मान की होय भले अपमान।
क्या खोया क्या पाइया नहीं प्रेम पैमान।।४२।।

हिया पिया छबि बसत इक नहीं प्रेम छबि आन।
राधा उर बसी कृष्ण छबि नहिं दूजी पहचान।।४३।।

नाता अजब है प्रेम का कितने भी हों दूर।
बढे निकटता आप ही चाह मिलन भरपूर।।४४।।

नयन बाट हिय पैठ कर मन मे कुछ कुछ होय।
प्रेम सुदी वह जानिये जिसे न दीजे खोय।।४५।।

प्रेम प्रसाद है ईश का समझ करें स्वीकार।
भूले से भी प्रेम का करें नहीं इन्कार।।४६।।

आकर्षण की धरा पर नींव पडे कमजोर।
प्रेम भवन पल में ढहे कंप वासना जोर।।४७।।

नये रूप नये रंग से मन में भरे उमंग।
जीने की इक चाह है जीवन प्रेम तरंग।।४८।।

परिभाषा बहु प्रेम की देश काल अनुसार।
अर्थ न बदला प्रेम का बदला सब संसार।।४९।।

आखर छोटा प्रेम का परिभाषा नहि छोट।
फैला अपने आप में नहीं प्रेम में खोट।।५०।।

पूरे इस संसार में फैली प्रेम की डोर।
हाथ लगे इक छोर तो छूटे दूजी छोर।।५१।।

प्रेम हिया पैठा नहीं उलझे दृग सौ बार।
हिय गहराई नापता पहली नज्र का प्यार।।५२।।

चिर परिचित पहचान सा अनजाना संबंध।
सारे जग को भा गया सुखद प्रेम का बंध।।५३।।

कहना मन सब चाहता सबसे रहा छुपाय।
अनजाना अनकहा यह नाता प्रेम कहाय।।५४।।

समझत ही उलझन बढे सुलझायी नहिं जाय।
सरल प्रेम मन परखता बुध्दि परख न पाय।।५५।।

अदभुत शक्ती प्रेम जिन समझ संजोयी पास।
सुर नर मुनि बस होंय सब जग उसका हो दास।।५६।।

गति हिय की बढ जाय जब कुछ सूझे ना काम।
इसी दशा को दीजिये आपा प्रेम का नाम।।५७।।

लगी लगन कहते सभी लगी न जाने कोय।
तन मन खोये जिस लगन प्रेम लगन सो होय।।५८।।

प्रेम रंग अस रंग जो चढता मन इक बार।
चढा रंग ना ऊतरे आये दिनन निखार।।५९।।

जग व्यापक सर्वज्ञ पर देखा ईश न जाय।
प्रेम अंश है ईश का अनुभव से हिय पाय।।६०।।

ओट होत अकुलात मन मिले चुरायें नैन।
अजब अवस्था प्रेम की मुख निकसत नहिं बैन।।६१।।

प्रेम गंग की धार में फॅसे होय उध्दार।
जो डूबा मझधार में उसकी नैय्या पार।।६२।।

बिना कहे हिय बात को दूजा हिय सुन लेय।
नगर मनोरम प्रेम यह केवल सुविधा देय।।६३।।

नयनों की भाषा अपुट समझ हिया जब लेत।
प्रेमहिं चतुर दुभाषिया जगत उपाधी देत।।६४।।

हिय से देखे प्रेम जब नयनों से बतियाय।
देख अचंभा प्रेम का जगत रहा चकराय।।६५।।

परखन मे माहिर बडा प्रेम पारखी जान।
खरी खोट पहचान कर करता तुरत निदान।।६६।।

प्रेम प्रकृति से मिला इक अनुपम उपहार।
मन संकोची पाय जेहिं बनता परम उदार।।६७।।

इक गहरा विश्वास सा इक अल्हड अहसास।
इक पगली अभिलाष सी प्रेम है मीठी प्यास।।६८।।

मन का अंधियारा मिटा जीवन बना महान।
लगन की लौ अंदर जगी दीप प्रेम तू जान।।६९।।

दाग दिखे जो चॉद में सूरज भीतर आग।
मन अंतर का राग सब समझ प्रेम का भाग।।७०।।

बिना कहे दूजा हिया सुनत हिया संदेश।
इस जग संभव नहीं यह अलग प्रेम का देश।।७१।।

जीवन सम ही प्रेम भी एक पहेली जान।
यतन बहुत नर कर थका नहीं सका पहचान।।७२।।

प्रेम सलिल तन भीगकर अनुभव होते मीठ।
बहकर प्रेम प्रवाह में मन होता अति ढीठ।।७३।।

क्षमा समाई प्रेम में अतुलित बल की खान।
हर विपदा पल मे टले प्रेम लेय जो ठान।।७४।।

त्याग प्रेम का दूसरा अति सुंदर सा नाम।
प्रेमानंद नहिं त्याग बिन व्यर्थ लुटाये दाम।।७५।।

नहीं लालसा देह की भरा समर्पण भाव।
निज संपदा लुटाय जग प्रेम कहाये साव।।७६।।

अजर अमर है प्रेम जग जीवन का परयाय।
याते ही तो प्रेम जग नहिं बिसराया जाय।।७७।।

प्रेम सुगंध व चांदनी सम देता अलहाद।
मन प्रसन्न रहता सदा होता नहिं विषाद।।७८।।

अंध अकर्षण में फंसा जगत ठगाया जाय।
धन्य धन्य हो जीव सोइ सांचा प्रेम कहाय।।७९।।

लगन करारी रहे पर आसक्ती से दूर।
अंध बंध तोडे सभी ऐसा प्रेम का नूर।।८०।।

पंखुडियों की विलगता और सलगता फूल।
ऐसे संुदर प्रेम को नहीं जाईये भूल।।८१।।

प्रेम अति सुंदर भावना अति उदार बहु नीक।
जीवन में संजोईये मान सत्य की सीख।।८२।।

अविचल मन चल विचल हो सुनकर पिय के बैन।
सत्य कहाये प्रेम जग प्रियतम के दो नैन।।८३।।

पिया हिया मन बसत है निस दिन आठहु याम।
सत्य किराया प्रेम का दे निज किया मुकाम।।८४।।

कहना चाहे मन बहुत भूल जाय पिय देख।
दशा अनोखी प्रेम की सत्य कहे मन लेख।।८५।।

प्रेम कवी की कल्पना साहस भरी उडान।
सत्य ऊॅचाई का शिखर छोटा लगे जहान।।८६।।

सत्य छलावा प्रेम इक मृगजल सा आभास।
प्यासे अधरों पर जनु इक प्यासी सी आस।।८७।।

प्रेम कल्पना कूंची से चित्रित सुंदर गांव।
अंबर सा फैला जगत सत्य असीमित ठांव।।८८।।

मुडमुड पिय को देखना लाज लगे हॅस देय।
अनुभव मीठे प्रेम के हॅसे फॅसे सो लेय।।८९।।

तरूणाई दहलीज पर बिछलाये जब पांव।
सत्य जानिये प्रेम की चिकनाई उस ठांव।।९०।।

प्रेम है इक आराधना सफल साधना ज्ञान।
बिना प्रेम के सत्य कह संभव नहिं पिय ध्यान।।९१।।

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