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अनुभूति में सविता मिश्रा की
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काश! ऐसा होता
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बित्ता भर रोशनी
समुद्र के तट पर

छंदमुक्त में-
अप्पू
थोड़ी-सी जगह
बेखबर लड़की
याद
रह-रह कर

 

समुद्र के तट पर

चाँद लिखता है रात भर
चाँदी की कलम से
समंदर के सीने पर प्रेम गीत
नारियल के पेड़ों में छिपकर
देखता है लहरों को
अपने लिए पागल होते

मैं देखती हूँ
कि किस तरह
टूटते हैं सपने
मछुआरिन की आँखों में
और किस तरह
खाली जाल झिझकता है
समुद्र से बाहर आने में

भूखे बच्चे
देखते हैं मछलियों के सपने
और चाँद-
उसी तरह
लिखता रहता है प्रेम गीत,
किन्तु चाँदी की कलम
बच्चों के सँवलाये शरीर पर
लिखती रहती है
भूखे-गीत

इस तरह
नमकीन हवाओं से लिपटकर
सिसकने लगती है भूख

१६ फरवरी २०१५

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