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अनुभूति में तरुण भटनागर
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क्षितिज की रेखा

 

क्षितिज में जो रेखा है

(१)
इस जगह से जो क्षितिज दिखता है,
वह सीधी रेखा वाला क्षितिज नहीं है,
उस क्षितिज की रेखा ऊँची-नीची हो गई है।
एक चौरस शीर्ष वाले पहाड ने,
बीच में आकर,
क्षितिज की सीधी रेखा को टेढ़ा-मेढ़ा कर दिया है।
गाँव के लोग उस पहाड़ को श्रवण डोंगरी कहते हैं।
कहते हैं, उसी पहाड़ पर मारा गया था श्रवण कुमार,
माता पिता के प्यार में,
और फिर अकेले रह गए थे, उसके अंधे माता-पिता,
अपने एकमात्र और लाड़ले पुत्र के बिना,
नि:सहाय और बेचारगी के साथ।
एक दु:ख, और भेदने वाली पीड़ा का प्रतीक है वह पहाड़,
तभी उसने अपनी उपस्थिति दर्ज की है,
क्षितिज की सीधी रेखा को बिगाड़कर,
तभी वह जम गया है,
उस रेखा को ऊँचा-नीचा करके।
चौरस और सपाट शीर्ष के साथ,
वह पहाड़,
पहाड़ ना लगकर किसी विशाल टीले सा लगता है,
ठीक उसी तरह,
जब हम रो नहीं पाते हैं,
और खोने लगते हैं अपना शीर्ष,
पता भी नहीं चलता,
कब घिसकर चौरस हो जाता है,
आकाश की ओर उम्मीदों और उमंगों के साथ उठा हुआ हमारा थूथन।
उस पहाड़ ने ढँक लिया है,
आकाश का थोड़ा सा हिस्सा,
जो उसके पीछे दबा हुआ है,
जो दिखता,
अगर होता सीधी लाइन वाला क्षितिज।
ऐसा लगता है,
उस पहाड़ ने जानबूझकर नहीं किया है यह सब,
जैसे हम छिपाते हैं,
कुछ बातें और कुछ पीड़ा के सपाट से प्रतीक,
और यों खुल जाता है,
हमारा दु:ख।
कोई योजना नहीं थी,
क्षितिज की उस सीधी रेखा को ऊँचा-नीचा करने की,
वह बस हो गया है,
श्रवण डोंगरी के टीलेनुमा दु:ख से।

(२)
क्षितिज की सीधी रेखा,
वास्तव में एक जोड़ है,
एक सिलाई,
या बर्बरतापूर्वक चिपका दिए गए दो टुकड़े,
धरती और आकाश के टुकड़े।
जैसे घर की देहरी होती है,
घर का भीतर और बाहर के संसार का जोड़।
पर एक अंतर है,
हम देहरी को पार कर बाहर के संसार में होते हैं,
पर अब तक क्षितिज की कोई ऐसी पार नहीं मिली,
कि ज़मीन से एक पैर आगे बढाकर मैं आकाश में पहुँच जाऊँ।
लंबी-लंबी यात्राओं के बाद भी,
मैं आज तक उस रेखा पर नहीं पहुँच पाया हूँ,
जो रोज़ दिखती है,
और जिसे देखकर यकीन होता है,
कि बस एक कदम की बात है यह पूरा आकाश।
मेरे पास अब तक,
आकाश में पहुँचने का वही घिसा पिटा तरीका है - उड़ान।
कुछ लोगों ने बताया है,
कि ऐसी यात्रा है,
जिसकी रोड़ धरती और आकाश के बीच की उस रेखा तक जाती है,
मैं अब तक उस यात्रा को चुन नहीं पाया हूँ,
ताकि हो,
उड़ान से बेहतर एक और तरीका पहुँचने आकाश में।

१ अगस्त २००५

 

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