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अनुभूति में तरुण भटनागर
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समुद्र किनारे शाम

सूरज के साथ-साथ
सूरजमुखी का खेत,
सुबह से शाम तक,
सूरज के साथ-साथ,
अपना चेहरा घुमाता हुआ।
वह शायद नहीं जानता,
कि पूरी पृथ्वी भी,
सूरज के सामने,
हमेशा अपना चेहरा नहीं करती है।
कभी-कभी उसकी पीठ,
होती है,
सूरज के सामने,
और चेहरा रात के अंधेरे में।
मैंने समझाया उस खेत को,
उसे बताया -
यह पूरे ब्रह्माण्ड का नियम है,
हर बड़े पिण्ड,
और शक्ति का कायदा है,
कभी चेहरा, कभी पीठ।
खेत समझ गया मेरी बात,
पर,
पृथ्वी को,
पूरे ब्रह्माण्ड को जानकर भी,
वह नहीं बदला।
सूरजमुखी के फूल,
आजकल धूप में तपकर,
अपने बीज बना रहे हैं।

८ जुलाई २००३

 

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