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अनुभूति में अचला दीप्ति कुमार की रचनाएँ–

ज़िन्दगी का साथ
मेरा प्यार

 

मेरा प्यार

टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे
हो किसी का प्यार लेकिन, प्यार वो मेरा नहीं है।

रख न पाया मान निज जो, प्यार वो कैसे करेगा?
हीनता से ग्रस्त है जो, दीनता ही दे सकेगा
द्वार पर तेरे खड़ा हूँ, स्नेह का लेकर निमंत्रण
एक चुटकी भीख को यह दीन का फेरा नहीं है
हो किसी का प्यार लेकिन, प्यार वो मेरा नहीं है

है विदित, होती रही है प्यार की उद्दाम धारा
बँध सके जो बंधनों से और ना निज कूल से
राह में अवरोध कोई सर उठाए
यह झुका दे, तोड़ दे, ढाये उखाड़े मूल से
है अगर यह प्यार तो आश्वस्त हूँ मैं
इस प्रभंजन ने प्रबल, यह मन मेरा घेरा नहीं है
हो किसी का प्यार लेकिन प्यार वो मेरा नहीं है

प्यार वो है ले बहे जो, मंद मंथर गति निरंतर
जी उठे स्पर्श पाकर हाँफती मरुभूमि बंजर
मान रखता, मान देता, मधुर मंगल रूप कोमल
प्यार का जो स्वप्न मेरा क्या वही तेरा नहीं है?
टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे
हो किसी का प्यार लेकिन , प्यार वो मेरा नहीं है।

9 अप्रैल 2007

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