अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में हिम्मत मेहता की
रचनाएँ—

हास्य व्यंग्य में—
चाय का निमंत्रण

छंदमुक्त में—
असमंजस क्यों
कितना सुंदर है यह क्षण
कुछ बातें कही नहीं जातीं
तुमसे क्या माँगूँ भगवान
बात एक छोटी सी
भगवान से वार्तालाप
मन में
मेरा संशय

संकलन में-
दिये जलाओ- दूसरा दीपक

 

 

बात एक छोटी सी

तब
बात एक छोटी-सी थी
शब्द बहुत थोड़े से
जाने अनजाने में
कह कर तुम चले गए
मन में जब उतरी मेरे
मैंने उसको सम्मान दिया
मेरे अपमानों के सबसे
ऊंचे आसन पर स्थान दिया
बींध गई मन को मेरे
छटपटा गया मेरा अंतर
जीवन के आधे क्षण मैंने
कर दिए उसी को अर्पण कर
कितना अर्सा है बीत गया
दिखाने को मैं मुस्काता हूँ
पर मन में भीतर ही भीतर
ज्वाला में जलता जाता हूँ
अब
फिर एक किरण ऐसी उभरी
जाने मन के किस कोने से
बदला, क्रोध, घुटन दीखे
अपने ही किए, घिनौने से
देरी से आई समझ मुझे
इतना जीवन बरबाद किया
तुम तो कह कर बस चले गए
मैंने अपना ही नाश किया
हमेशा
कब कोई कुछ भी कह दे
अभिमान अगर ना बींध पाए
मन में धारूँ ही नहीं घृणा
तो मधु सिंचित जीवन हो जाए।

१ दिसंबर २००४

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter