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अनुभूति में कृष्ण बिहारी की रचनाएँ -

गीतों में—
आवारा मन
कितने तूफ़ानों से
कुछ न कहूँगा
गीत गुनगुनाने दो
तुम आए तो
तुम साथ चलो
दिल हँसते हँसते रोता है
दूर न जाते
देवता मैं बन न पाया
प्रीत- नौ चरण
राह जिस पर मैं चलूँ
रुपहले गीत का जादू
वही कहानी
साथ तुम्हारे
स्मृति

संकलन में—
ज्योतिपर्व   –  चाँदनी की चूनर ज़मीं पर है
          –  मत समझो पाती
जग का मेला – झरना

 

वही कहानी

वही कहानी मत दुहराओ, मेरा मन हो
विकल न जाए

भावुकता की बात और है
प्रीत निभाना बहुत कठिन है
यौवन का उन्माद और है
जनम बिताना बहुत कठिन है
आँचल फिर तुम मत लहराओ, पागल मन है
मचल न जाए...

दरपन जैसा था मन मेरा
जिसमें तुमने रूप सँवारा
तुम्हें जिताने की ख़ातिर मैं
जीती बाज़ी हरदम हारा
मेघ नयन में मत लहराओ, सारा सावन
पिघल न जाए...

तोड़ा तुमने ऐसे मन को
पुरवा जैसे तोड़े तन को
सोचो मौसम का क्या होगा
बादल यदि छोड़े सावन को

मन चंचल है मत ठहराओ, अमरित ही हो
गरल न जाए...

कदम-कदम पर वंदन करके
यदि मैं तुमको जीत न पाया
कमी रही होगी कुछ मुझमे
जो तुमने संगीत न पाया
तान मगर अब मत गहराओ, जीवन हो फिर
तरल न जाए...

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