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अनुभूति में लावण्या शाह की
की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
कल
तुलसी के बिरवे के पास
प्राकृत मनुज हूँ
बीती रात का सपना

गीतों में-
जपाकुसुम का फूल
पल पल जीवन बीता जाए

संकलन में-
वसंती हवा–कोकिला
प्रेम गीत–प्रेम मूर्ति
वर्षा मंगल – अषाढ़ की रात
गांव में अलाव–जाड़े की दोपहर में
गुच्छे भर अमलतास–ग्रीष्म की एक रात
ज्योतिपर्व–दीप ज्योति नमोस्तुते
दिये जलाओ–प्रीत दीप
ज्योति पर्व
मौसम– खिड़की खोले, विजय प्रकृति श्री की
ममतामयी–अम्मा

 

अम्मा

माँ! तुम चली गईं!
देह के बंधन सब तोड़
सारे रिश्ते नाते तोड़, छोड़
सीमित सीमाओं के पार,
जीर्ण शीर्ण देह के द्वार,
ममता का उजियाला बाल,
थके कदम से, मूंदे नयन से,
हमें छोड़कर गईं!
मां तुम चली गईं!

कौन कहेगा "बेटी,
सुन रही हो ना री?"
"हाँ, अम्मा, सुन रही हूँ!"
किससे अब, यह कहूँगी?
कर देना सारे अपराध क्षमा
अवहेलना या मनमुटाव भाव
उदार हृदय से, कर सब को क्षमा!
माँ! मैं हूँ तेरी बेटी!
ओ माँ! तुम क्यों चली गईं!

९ मई २००५

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