अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रेम माथुर की रचनाएँ

कविताओं में-
2 अक्तूबर की याद में
खाली झोली
गुलमोहर
जड़ें
धूप खिली है
बापू की याद

क्षणिकाओं में-
आठ क्षणिकाएँ

संकलन में-
नया साल- जश्न नए साल का

  जड़ें

पेड़ जड़ नहीं होते
जड़ो के साथ चलते हैं
जड़ें रुकी नहीं कभी कहीं
जाती हैं वहाँ जहाँ है जल
दूर-दूर तक जाती हैं
होकर रेगिस्तानी रेत से
टेढ़ी मेढ़ी पथरीली राहों से
दीवारों की दरारों से होकर
नीवें हिलातीं
सीमायें लाँघतीं
स्नेह की खोज में।

हमारी जड़ें वहाँ हैं जहाँ
प्यार है प्रीति है वात्सल्य है
जाता है मन वहीं फिर फिर
जहाँ हैं यादें
स्नेह के अटूट बन्धन हैं।

मैं जाता हूँ बार-बार
बहुत दूर
वहीं
जहाँ अपनों का अनुरागी
माँ का पापा का
अनुजों का
बालसखाओं का
पड़ौसी चाचा चाचियों का
सहवास मिले।

जहाँ औपचारिक मुखौटे नहीं
मुस्कारहटें नकली नहीं
बस हँसी है
आँसूँ हैं नैसर्गिक
गुस्सा है प्राकृतिक
क्षणिक।
हाँ हैं लोग भावुक
पल में ये पल मे वो
मगर हैं वही
असली
रिश्तों में बन्धे।

जीवन पनपता है वहीं
जहाँ हैं स्नेह आँसुओं का
जहाँ पेड़ का हैं जीवन स्रोत
वहीं जाती हैं जड़ें
क्या पेड़ जड़ नहीं होते?

११ अगस्त २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter