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  कर्म और संघर्ष

जीवन संघर्ष और सृजन का नाम है
लेकिन बीत रहा समय कर्मफल की आशा में
चल रहा ये चक्र सदियों से।

जीवन नाम है आशा और निराशा का
सूखे बीज से ही आशा की नयी कोंपलें फूटती हैं।
लेकिन, ज़रूरत होती उसमें पानी डालने की
जब मानव हो जाता सजग तब नव किसलय से
भर जाते मुरझाए पेड़
लहलहा उठती खेतों की बालियाँ
कर्मठता तो लिख देती इतिहास
क्षितिज के उस पार।

घेर लेती हैं जब बाधाएँ
हार जाता मानव
खड़ा रह जाता अर्जुन सरीखा वीर
युद्ध के बीचो-बीच अकर्मण्य।
तब देना पड़ता स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को उपदेश
"हे अर्जुन गांडीव उठा कर्म कर"
जैसे सरिता की राह में रोड़े
आने पर बज उठती मधुर सरगम
कठिनाइयों से न घबरा
हे मानव तू कर्म कर कर्म कर

२४ सितंबर २००६

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