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  मधुयामिनी

आई मधुयामिनी
रौशन होकर
जल उठा मन का दीप।
भावना और जीवन
उमंगो के समंदर में
लगे हिलोरें लेने
सारी खुशियों को
करने आत्मसात।

लेकिन मै जानती हूँ
प्यार नहीं दे सकोगे
तो घृणा-पीड़ा ही दे दो।
पर जो भी दो संपूर्ण दो
उसका एक कण भी
अपने पास न रहने दो।
ताकि संसार के और
लोगों के लिए
प्यार के सिवा
कुछ न बचे।

समझूँगी
संसार रचने वाले के दामन में
मेरे लिए यही था।
काश! मेरे लिए भी
किसी का संपूर्ण
प्यार होता
जो सिर्फ मेरा होता।

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