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अनुभूति में प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण की
रचनाएँ-

नयी कविताओं में-
अपने को मिटाना सीखो
एक दिन

ये मेरे कामकाजी शब्द

कविताओं में-
उभरूँगा फिर
एक धुन की तलाश
गुज़रे कल के बच्चे
घर लौट रहे बच्चे
चलती है हवा
जापान में पतझर
झरती पत्तियों ने
दिन दिन और दिन

ध्वन्यालेख तन्मयता के
निराला को याद करते हुए
मुक्ति
मौसम
लक्ष्य संधान
वसंत से वसंत
सार्थक है भटकाव

सुनो सुनो

  दिन, दिन और दिन

ये अनमने दिन!
कुम्हार के चाक पर घूमते
मिट्टी के लौंदे से
अधबने दिन!
पार्क की बैंच पर सिर टिकाए
सूखे पत्तों से लाचार पड़े हैं दिन!

पत्ती-पत्ती हो बिखर गए
अधलिखे काग़ज़ की चिंदियों से दिन!
ये अनमने दिन!

कितने-कितने रंगों के हैं दिन!
दिनों के हैं कितने-कितने रंग!!
हर दिन को कल में
बदलते जा रहे हैं दिन!

आने वाले कल की खुशबू से
महक रहे हैं दिन!

ये अनमने दिन!

१६ जनवरी २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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