अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कल्पना रामानी की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
कोमल फूलों जैसे रिश्ते
खोलो मन के द्वार
गीत मैं रचती रहूँगी
पसीने से जब जब
भू का तन प्यासा

कुंडलिया में-
नारी अब तो उड़ चली

अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
खुदा से खुशी की लहर
खुशबू से महकाओ मन
ज़रा सा मुस्कुराइये
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
बंजर जमीं पे बाग
मन पतंगों संग
यादें
वतन को जान हम जानें

गीतों में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई

काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ

जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
धूप सखी
बेटी तुम

भ्रमण पथ
ये सीढ़ियाँ

दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु

 

खोलो मन के द्वार

खोलो मन के द्वार बंद क्यों?
संवादों के तार बंद क्यों?

अहंकार की खुली मुट्ठियाँ
प्रेम-पुष्प उपहार बंद क्यों?

हैरत है, नयनों के नीर में
गैरत का संचार बंद क्यों?

कुविचारों को मिलता पोषण
कोश, सकल-सुविचार बंद क्यों?

बाँटा करते थे जो गुरुकुल
हुए शुद्धि संस्कार बंद क्यों?

मदिरा के पट खुले बारहा
रोटी के बाज़ार बंद क्यों?

सत्य कहें जो उन मुद्दों का
करती मुख सरकार बंद क्यों?

शूलों के पहरे में आखिर
फूलों के परिवार बंद क्यों?

फर्ज़, जन्म देना औरत का
मिले जन्म, अधिकार बंद क्यों?

दीनों हित दहलीज 'कल्पना'
तेरी हे करतार! बंद क्यों?

२० जुलाई २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter