अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में महेन्द्र प्रताप पांडेय 'नंद' के दोहे-

नए दोहे-
माता

दोहों में-
कवि मर्म
पिता

 

कवि मर्म

कवि की कोई जाति नहिं, नही है कोई धर्म।
केवल हिय के भाव का, व्यक्त करे वह मर्म।।१।।

जग का उर में हर समय, रखता है वह मोह।
रस का जिसके हृदय में, चलता है सन्दोह।।२।।

भावुक उर में जन्म ले, नूतन सृजन विचार।
अद्भुत वर्णन कर सके, करके छन्द विचार।।३।।

भाव छन्द रस युक्त कवि, देता नव आदर्श।
जिस पर जन-जन कर सके, नव मति नवल विमर्श।।४।।

देशकाल दिखला रहा, रचना का संसार।
ताने बाने खुद बुने, करता दिव्य प्रसार।।५।।

जनता का सेवक कवि, प्रेरक प्रबल प्रकाम।
ललित पदों को ग्राह्य कर, लिखता ललित ललाम।।६।।

कवि की दुनिया अलग है, अलग है रचना धर्म।
अपने मन को तोष दे, समझे जग का मर्म।।७।।

अद्भुत अलख जगा सके, रचना करे समर्थ।
यद्यपि धन से विरत रह, देता सबको अर्थ।।८।।

कवि को केवल चाहिये, आन मान सम्मान।
रचना उसका अस्त्र है, उसी सी है बलवान।।९।।

मई २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter