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अनुभूति में प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
की रचनाएँ-

गीतों में-
आया मधुमास

अमल भक्ति दो माता
एक दीप
चन्दन वन
जीवन और भावना
धरती कहे पुकार के
नया उजाला देगी हिन्दी
रश्मि जगी

लौट चलो घर
वन में दीपावली
विहान हुआ
सरस्वती वंदना

कविताएँ-
जीवन
प्रश्न
मृत्यु
संपूर्ण

संकलन में-
ज्योतिपर्व  - दीपक जलता
          - मधुर दीपक
          - मत हो हताश
मेरा भारत  - मातृभूमि जय हे
जग का मेला -चंदामामा रे
नया साल   -शुभ हो नूतन वर्

 

विहान हुआ

जागो! विहान हुआ!

तम से नाता तोड़ो,
प्राची को मुख मोड़ो।
आगे प्रयाण करो,
पीछे को मत दौड़ो।

लेकर आदर्श यही,
मारुत गतिमान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!

असत को न सत जानो,
तम-शासन मत मानो।
कहता है नया दिवस,
अपने को पहचानो।

क्षणभंगुर रजनी का,
देखो, अवसान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!

सागर का जल जागा,
खग-कोलाहल जागा।
उषा जगी, दिशा जगी,
नभ जागा, तल जागा।

उठो-उठो! कर्मवीर!
युग का आह्वान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!

जग में जो सोते हैं,
खोते ही खोते हैं।
जीवन में बिना ब्याज,
कण्टक ही बोते हैं।

क्रियाशील को सदैव,
हर पल वरदान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!

निद्रा-प्रमाद तजो,
कल का विषाद तजो।
सपनों की संसृति से,
झूठा विवाद तजो।

देता आदेश यही,
उदित अंशुमान हुआ।।
जागो! विहान हुआ!

(शकुन्तला महाकाव्य से - सर्वदमन सर्ग)

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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