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अनुभूति में हरिवंशराय बच्चन की रचनाएँ-

गीतों में-
इस पार उस पार
एकांत संगीत
क्या भूलूँ क्या याद करूँ
कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ
कोई पार नदी के गाता
जीवन की आपाधापी में
जो बीत गई सो बात गई
ड्राइंगरूम में मरता हुआ गुलाब
तुम मुझे पुकार लो
दिन जल्दी-जल्दी ढ़लता है
पथ की पहचान
बहुत दिनों पर
मेरा संबल
युग की उदासी
लहरों का निमंत्रण

संकलन में--
ज्योति पर्व- आज फिर से, आत्मदीप
प्रेमगीत- आदर्श प्रेम
मेरा भारत- आज़ादी का गीत, चल मरदाने

गौरव ग्रंथ में--
मधुशाला

  ड्राइंगरूम में मरता हुआ गुलाब

गुलाब
तू बदरंग हो गया है
बदरूप हो गया
झुक गया है
तेरा मुँह चुचुक गया है
तू चुक गया है।

ऐसा तुझे देखकर
मेरा मन डरता है
फूल इतना डरावना होकर मरता है!

खुशनुमा गुलदस्ते में
सजे हुए कमरे में
तू जब

ऋतुराज-राजदूत बन आया था
कितना मन भाया था-
रंग-रूप रस-गंध टटका
क्षण भर को
पंखुरी की परतों में
जैसे हो अमरत्व अटका!
कृत्रिमता देती है कितना बड़ा झटका!

तू आसमान के नीचे सोता
तो ओस से मुँह धोता
हवा के झोंके से झरता
पंखुरी-पंखुरी बिखरता
धरती पर सँवरता
प्रकृति में भी है सुंदरता।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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