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अनुभूति में गिरिजाकुमार माथुर की रचनाएँ-

गीतों में-
कौन थकान हरे जीवन की

छाया मत छूना

कविताओं में-
आज हैं केसर रंग रंगे वन
चूड़ी का टुकड़ा
ढाकबनी
नया कवि
पन्द्रह अगस्त
बरसों के बाद कभी

संकलन में-
वर्षा मंगल- भीगा दिन
मेरा भारत- हम होंगे कामयाब

  चूड़ी का टुकड़ा

आज अचानक सूनी-सी संध्या में
जब मैं यों ही मैले कपड़े देख रहा था
किसी काम में जी बहलाने
एक सिल्क के कुर्ते की सिलवट में लिपटा
गिरा रेशमी चूड़ी का छोटा-सा टुकड़ा
उन गोरी कलाइयों में जो तुम पहने थीं
रंग भरी उस मिलन रात में।

मैं वैसा का वैसा ही रह गया सोचता
पिछली बातें
दूज कोर से उस टुकड़े पर
तिरने लगीं तुम्हारी सब तस्वीरें
सेज सुनहली
कसे हुए बन्धन में चूड़ी का झर जाना।
निकल गईं सपने जैसी वे रातें
याद दिलाने रहा सुहाग भरा यह टुकड़ा।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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