अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की रचनाएँ-


कविताओं में-
अंधेरे का मुसाफ़िर
एक सूनी नाव
तुम्हारे लिए
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट
रात में वर्षा
व्यंग्य मत बोलो
विवशता
शुभकामनाएँ
सब कुछ कह लेने के बाद
सुरों के सहारे

संकलन में-
वसंती हवा- आए महंत वसंत
गाँव में अलाव - जाड़े की धूप
पिता की तस्वीर- दिवंगत पिता के प्रति
नया साल- शुभकामनाएँ

क्षणिकाओं में
वसंत समर्पण आश्रय

  अंधेरे का मुसाफ़िर

यह सिमटती साँझ
यह वीरान जंगल का सिरा
यह बिखरती रात
यह चारों तरफ़ सहमी धरा
उस पहाडी पर पहुँच कर
रोशनी पथरा गई
आखिरी आवाज़ पंखो की
किसी के आ गई

रुक गईं अब तो अचानक
लहर की अंगड़ाइयाँ
ताल के खामोश जल पर
सो गई परछाइयाँ।

दूर पेंडो की कतारे
एक ही में मिल गई
एक धब्बा रह गया जैसे
ज़मीनें हिल गईं

आसमाँ तक टूट कर जैसे
धरा पर गिर गया
बस धुएँ के बादलों से
सामने पथ घिर गया

यह अँधेरे की पिटारी
रास्ता यह साँप-सा
खोलने वाला अनाड़ी
मन रहा है काँप-सा

लड़खड़ाने लग गया मै
डगमगाने लग गया
देहरी का दीप तेरा
याद आने लग गया

थाम ले कोई किरण की बाँह
मुझको थाम ले
नाम ले कोई कहीं से
रोशनी का नाम ले

कोई कह दे दूर देखो
टिमटिमाया दीप एक
ओ अंधेरे के मुसाफ़िर
उसके आगे घुटने टेक

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter