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अनुभूति में त्रिलोचन की रचनाएँ-

गीतों में-
कोइलिया न बोली

परिचय की वो गाँठ
शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता
हंस के समान दिन

सॉनेट में-
दुनिया का सपना
वही त्रिलोचन है
सॉनेट का पथ

कविताओं में-
चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
जनपद का कवि
नगई महरा

भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा

अंजुमन में-
बिस्तरा है न चारपाई है

हमको भी बहुत कुछ याद था

संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-बैठ धूप मे
गुच्छे भर अमलतास-दोपहरी थी जेठ की

 

परिचय की वो गाँठ

यों ही कुछ
मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गाँठ लगा दी!

था पथ पर मैं
भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन
लहर थी उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!

कभी-कभी
यों हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूँज किसी
उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!

जड़ता है
जीवन की पीड़ा
निष् तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने
अनजाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!

16 दिसंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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