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अनुभूति में जगत प्रकाश चतुर्वेदी की रचनाएँ-

गीतों में-
आएगा कुछ बादल जैसा
जलती हुई कोई नदी
वृक्ष हैं किनारों के
सूर्य की पाती

  आएगा कुछ बादल जैसा

मुझे वृक्ष की तरह न काटो
मैं बिरवा तुलसी-दल जैसा!

कभी मंजरी के घर जन्मा
जीवन यह तुलसी का चौरा
चंदन-वन होकर आया हूँ
जैसे कोई पवन झकोरा
मैं कस्तूरी वाला घन हूँ
थका-थका-सा घायल जैसा!

सुख की होती उमर न कोई
दुख भी कितना बड़भागी है
तन तो बैठा सिंहासन पर
मन उतना ही वैरागी है
कहीं न देहरी, द्वार न कोई
बहता नदिया के जल जैसा!

घुँघरू बनकर नाचा हूँ मैं
मंजीरों-सा गया बजाया
राजा होकर द्वारे-द्वारे
भेस फकीरों का घर गाया
मीरा-सा हर गीत हो गया
गाता फिरता पागल जैसा!

ढका-ढका चंद्रमा ग्रहण से
कोई उसे निहारे कैसे
जो आँधी वाला बादल हो
पपिहा उसे पुकारे कैसे
धूल-धूल होकर भी घन हूँ
इसमें कहीं न कुछ छल जैसा!

मुझे नहीं दुख है बिंधने का
क्योंकि हुए विजयी तुम अर्जुन
मेरी जय यह शर-शैया है
जिसे बुना तुमने शर चुन-चुन
प्यासा हूँ, पर धरा न बेधो
आएगा कुछ बादल जैसा!

कोई दमयंती सोई है
पवन उसे आ, जगा नहीं दे
पत्तों-पत्तों धूप उतरकर
आग छाँव में लगा नहीं दे
भटकूँगा एकाकी वन-वन
मैं निर्धन, राजा नल जैसा!

१६ नवंबर २००९

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