अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में जीवन शुक्ल की रचनाएँ —

गीतों में—
आषाढ़ तो आया
आँख भर देखा
माँग रहा लेकर कटोरा
व्यस्त


 

 

माँग रहा लेकर कटोरा

माँग रहा लेकर कटोरा
भटक गई किस्मत का सावधान छोरा।

ढकी मुँदी आँखों के कजरारे द्वार
इकतारी काया के कर का प्रस्तार
टूट नहीं पाता है अम्बर का धीर
धरती पी जाती है होंठों में पीर

उड़ती कनकैया का
धारदार डोरा
माँग रहा लेकर कटोरा
दूषित समाज का गहन लगा छोरा।

असमय में कबीर के गीतों का साथ
पोंछ रहा कमलों से शबनम का माथ
माँग रहा कण कण में दुर्दिन का ईश
दाता की खैर कुशल सस्ती आशीष

माटी की गोद भली
संयम का बोरा
माँग रहा लेकर कटोरा
नियति के नवासे का नया नया छोरा

९ अगस्त २००६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter