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अनुभूति में कल्पना मनोरमा 'कल्प' की रचनाएँ-

दोहों में-
गंगा की अवतार माँ

गीतों में-
दीपक को तम में
बादल आया गाँव में
बोल दिये कानों में
मत बाँधो दरिया का पानी
मन से मन का मिलना

संकलन में-
देवदार- देवदार के झरोखे से
रक्षाबंधन- रीत प्रीत की
शिरीष- वन शिरीष मुस्काए

शुभ दीपावली- दीप बहारों के
होली है- चलो वसंत मनाएँ

 

गंगा की अवतार माँ

गंगा की अवतार माँ, मैं नदिया की धार
पानी दोनों एक रंग, मिल पा जाऊँ पार

हवा भरी है गंध से, चित्त भरा है राग
है सामग्री हवन की, नहीं पास में आग

समता-ममता खो चुकी, खाली उर आगार
दाँव खोजते एक बस, गिरगिट-सा व्यवहार

सांध्य की आगोश में, छिप जाता जब सूर्य
पीड़ा अतिभर टीसती, बजता दुःख का तूर्य

पत्थर के परिवार को, सींचा भर-भर नेह
बदले में पाया सदा, धोबी के कर रेह

भ्रम में भूला दिन फिरा, काटी डर-डर रात
पौ फटते ही बोलता, झूठी-साँची बात

गिरा आचरण कूप में, बचा सिर्फ़ व्यभिचार
अपने आगे समझते, संस्कृति को लाचार

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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