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अनुभूति में कल्पना मनोरमा 'कल्प' की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कविता
तुम्हारे बाद
तुलसी के बीज
घोंसले
लौटती हूँ

दोहों में-
गंगा की अवतार माँ

गीतों में-
दीपक को तम में
बादल आया गाँव में
बोल दिये कानों में
मत बाँधो दरिया का पानी
मन से मन का मिलना

संकलन में-
देवदार- देवदार के झरोखे से
रक्षाबंधन- रीत प्रीत की
शिरीष- वन शिरीष मुस्काए

शुभ दीपावली- दीप बहारों के
होली है- चलो वसंत मनाएँ

 

लौटती हूँ

सभी की होतीं हैं
कुछ जगहें - कुछ वजहें
वापास लौटने की

जैसे समझदार पंछी लौटते हैं
मौसम परिवर्तन के वक्त
नए ठिकानों पर

मछलियाँ लौट जातीं हैं
मुख्यधारा में
छोड़कर अपने अण्डे
किनारों पर

नदियाँ समुद्र में
कुछ ठहरकर समुद्र बादलों में
रेती घरों में
पुराने होकर घर रेती में

बूढ़ी होकर माएँ
अक्सर लौटा करतीं है बचपन में
जैसे जीवन मृत्य में
और मृत्यु जीवन में

अँधेरा होने से पहले
चिड़ियाँ घोंसलों में
दीपक की ज्योति रात में
भोर होते ही आँख में

वासन्ती आहट पाकर
पत्ते डालियों में
अकाल के बाद दाने
बालियों में

ठीक उसी प्रकार
कभी -कभी वर्तमान से ऊबकर
लौटती हूँ मैं
उन आँगनों में जहाँ
उगाई और रोपी गई थी कभी
बड़े चाव से

मिलने
अपने उन हिस्सों से
जो रहते आ रहे हैं हमारे बाद भी
उन घरों में।

सितंबर २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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