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अनुभूति में डॉ कीर्ति काले की रचनाएँ-

गीतों में-
खुशबुओं के ज्वार
पहले पहले प्यार में
मखमली स्वेटर
मनचाहा इतवार
हिरनीला मन

 

पहले- पहले प्यार में

आँखों में फागुन की मस्ती
होठों पर वासंती हलचल
मतवाला मन भीग रहा है
बूंदों के त्यौहार में
शायद ऐसा ही होता है
पहले- पहले प्यार में

पैरों की पायल छनकी कंगन खनका
हर आहट पर चौंक–चौंक जाना मन का
साँसों का देहरी छू-छूकर आ जाना
दर्पण का खुद दर्पण से ही शरमाना
और धड़कना हर धड़कन का
सपनों के संसार में

भंग चढ़ाकर बौराया बादल डोले
नदिया में दो पाँव हिले हौले-हौले
पहली-पहली बार कोई नन्ही चिड़िया
अम्बर में उड़ने को अपने पर खोले
हिचकोले खाती है नैया
मस्ती से मझधार में

जिन पैरों में उछला करता था बचपन
कैसी बात हुई कि बदल गया दरपन
होता है उन्मुक्त अनोखा ये बन्धन
रोम रोम पूजा साँसे चन्दन-चन्दन
बिन माँगे सब कुछ मिल जाता
आँखों के व्यापार में

२८ फरवरी २०११

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