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अनुभूति में मदन मोहन अरविंद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
चुप रहना हो
जो वफा से
डाल हिलाकर देखो
मैं चला तुम भी चलो
हाथ गैरों से मिलाया

गीतों में-
कह दो किसी और घर जाए
साहिल को अपनाना हो तो
हर दुख पर इतना भर कह ले

अंजुमन में—
अच्छा लगता है
कैद हैं साँसें
छत मैं तुम आँगन
जिंदगी के जश्न
दिन गया
दिल को बहला जाती थी
देखना चाहे इधर
पत्थरों को आइना कैसे कहूँ
पतझड़ को न देना तूल
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती
भूख का मतलब
रात सुलाती
रोज खुले मे
वक्त की दरियादिली
वक्त ने दो ग़म दिए

वही सूरत वही साया
वो टहलते वक्त
शोर भारी हो रहा है

कुंडलियों में-
पाँच मौसमी कुंडलियाँ

  हर दुख पर इतना भर कह ले

हर दुख पर इतना भर कह ले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।

क्यों आफत से जी घबराए
भीगे पलक आँख भर आए
हँसने को हैं जो रोते हैं
आँसू हर गम को धोते हैं।

चल खारे पानी में बह ले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।

घायल है कलियों का सीना
माँग रहा है चमन पसीना
बगिया में गुल खिल जाएँगे
हमजोली फिर मिल जाएँगे।

काँटों पर चलना है पहले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।

मान ज़रा मौसम का कहना
ऐसा भी क्या भला मचलना
अब कोई मजबूरी होगी
कल हर चाहत पूरी होगी।

आज समय जो कुछ दे वह ले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।

ऐसे भी मौके आएँगे
जो अपने हैं ठुकराएँगे
वार करेंगे उकसाएँगे
आखिर थक कर हट जाएँगे।

थोड़ा मन मसोस कर रह ले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।

कहने को कुछ भी मुमकिन है
पर यथार्थ की राह कठिन है
तुझको बढ़ते ही जाना है
चट्टानों से टकराना है।

फिर सहेजना स्वप्न रुपहले
सुख चाहे तो ये दुख सह ले।

८ दिसंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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