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अनुभूति में मदन मोहन अरविंद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
चुप रहना हो
जो वफा से
डाल हिलाकर देखो
मैं चला तुम भी चलो
हाथ गैरों से मिलाया

गीतों में-
कह दो किसी और घर जाए
साहिल को अपनाना हो तो
हर दुख पर इतना भर कह ले

अंजुमन में—
अच्छा लगता है
कैद हैं साँसें
छत मैं तुम आँगन
जिंदगी के जश्न
दिन गया
दिल को बहला जाती थी
देखना चाहे इधर
पत्थरों को आइना कैसे कहूँ
पतझड़ को न देना तूल
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती
भूख का मतलब
रात सुलाती
रोज खुले मे
वक्त की दरियादिली
वक्त ने दो ग़म दिए

वही सूरत वही साया
वो टहलते वक्त
शोर भारी हो रहा है

कुंडलियों में-
पाँच मौसमी कुंडलियाँ

  वही सूरत वही साया

वही सूरत वही साया कभी शीशा कभी पत्थर
वही इन्सान का जाया कभी शीशा कभी पत्थर

यक़ीनन मिल गए होते अगर खुद ही मिले होते
दिलों के नाम पर आया कभी शीशा कभी पत्थर

ज़माने को समझने का इरादा जब किया मैंने
नजर के सामने पाया कभी शीशा कभी पत्थर

सभी ने दोस्त कह-कह कर लगाया यूँ गले मुझको
हजारों बार टकराया कभी शीशा कभी पत्थर

दवा का तो बहाना था उसे बस जख्म देने थे
सितमगर साथ में लाया कभी शीशा कभी पत्थर

१८ अप्रैल २००११



 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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