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अनुभूति में महेंद्र भटनागर की रचनाएँ

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अभिलषित
आसक्ति
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गीतों में-
उत्सर्
एक दिन
जीने के लिए
दीपक
धन्यवाद
बस तुम्हारी याद
भीगी भीगी भारी रात

शुभैषी
सहसा
यह न समझो

कविताओं में-
आस्था
ओ भवितव्य के अश्वों!

  उत्सर्ग

तुमने क्यों
काँटे बीन लिए?

जब हम-तुम दोनों साथ चले
सुख-दुख लेकर जीवन-पथ पर,
कुश-काँटों से आहत उर को
आपस में सहला-सहला कर,
पर, अनजाने में, तुमने क्यों
मेरे सारे
दुख छीन लिए?
तुमने क्यों
काँटे बीन लिए?

आधे पथ तुम ले जाओगी
क्या तुमने सोचा था मन में?
अंतिम मंज़िल मैं, ले जाता
निर्जन वन के सूनेपन में!
पर, हाय! कहाँ वह मध्य मिला?
पग सह न सके,
गति हीन किए!
तुमने क्यों
काँटे बीन लिए?

२३ फरवरी २००९

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