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नई रचनाओं में-
अब इस दयार में
ऐलाने सहर
गनीमत से गुजारा
तमाम ख़ुश्क दयारों को
सच्ची श्रद्धा व सबूरी

अंजुमन में-
गाँवों से चौपाल
दिन निकलता है
न तो शैतान चाहिये
रूप होना चाहिये
हमें एक दूसरे से

गीतों में-
चल चलें एक राह नूतन
छंदों के मतवाले हम
मजबूरी का मोल
यमुना कहे पुकार

संकलन में-
होली है- हुरियार चले बरसाने
वटवृक्ष- बरगद
खिलते हुए पलाश- खिलते हुए पलाश

`

न तो शैतान चाहिये

न तो शैतान चाहिए, न ही भगवान चाहिए।
दिलों पे राज करने को - फकत इन्सान चाहिए।।

दिलों से बात जो निकले, दिलों तक जा पहुँचती है।
उसे सुनने सुनाने को - न कोई कान चाहिए।।

मोहब्बत की इमारत खूब सुन्दर बन सकेगी पर।
निगाहों में जो जँचता हो, वही सामान चाहिए।।

कसम, वादे सभी झूठे, दिलासा दे नहीं पाते।
भरोसा जीतने को बस - खरा ईमान चाहिए।।

ज़माने से जुदा एक दोस्ती, क्यों हो नहीं सकती।
मगर दोनों के दिल में, 'एक से' अरमान चाहिए।।

१२ दिसंबर २०११

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