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अनुभूति में ओम प्रकाश तिवारी की रचनाएँ

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कर्फ्यू में है ढील
कुम्हड़ा लौकी नहीं चढ़ रहे
गाली देना है अपना अधिकार
चाहे जितने चैनल बदलो
न्याय चाहिये

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अब सावन ऐसे आता है
अरे रे रे बादल
बूँद बनी अभिशाप

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पाँच चुनावी कुंडलियाँ

अंजुमन में-
ख़यालों में

  बूँद बनी अभिशाप

बड़ी भयावह लागे बरखा
बूँद बनी अभिशाप

बालक खेलें कालकलौटी
उनको भाते मेह,
उनका क्या हो बुलडोज़र से
उजड़े जिनके गेह।

इससे तो अच्छा था साथी
मई-जून का ताप।
बैठ सुबह से शाम हो गई
हुई न बिक्री एक,

किंतु सिपाही हफ़्ता ख़ातिर
खड़ा लगाए टेक।
और उधर घर जाकर सुनना
बेटी का आलाप।

भूमिहीन के पाँव तले की
छीने भूमि आसाढ़,
एक अदद कुटिया गरीब की
बहा ले गई बाढ़।

इसी बहाने नेता अपने
गगन रहे हैं नाप।

१ अगस्त २००६

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