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अनुभूति में ओम प्रकाश तिवारी की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
कर्फ्यू में है ढील
कुम्हड़ा लौकी नहीं चढ़ रहे
गाली देना है अपना अधिकार
चाहे जितने चैनल बदलो
न्याय चाहिये

गीतों में-
अब सावन ऐसे आता है
अरे रे रे बादल
बूँद बनी अभिशाप

कुंडलियों में-
पाँच चुनावी कुंडलियाँ

अंजुमन में-
ख़यालों में

 

चाहे जितने चैनल बदलो

चाहे जितने चैनल बदलो
दिखता सिर्फ बवाल

दुराचार से सुबह शुरू हो
हत्याओं से शाम,
घोटालों पर बहस निरर्थक
चलना है अब आम

जिधर देखिए टोपी बदले
दिखें केजरीवाल

सास बहू की कथा बदलती
रोज नया इक रंग
जोरू लखनलाल की भागे
रामचंद्र के संग

बात बात पर बहू ठोंकती
सासू जी से ताल

ज्योतिष पारंगत सुंदरियाँ
दिखें पलटती ताश
कहीं खिलाएँ निर्मल बाबा
हमें समोसा-सॉस

कथा बाँचकर पीट रहे हैं
लोग दनादन माल

२४ दिसंबर २०१२

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