अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रामदेव लाल ’विभोर‘ की रचनाएँ— 

गीतों में-
कैसे फूल मिले
फूटा चश्मा बूढ़ी आँखें
बाज न आए बाज
भरा कंठ तक दूषित जल है
मैं घड़ी हूँ

 

 

बाज न आए बाज

बाज न आए
बाज, कबूतर कब तक दुबके
पग-पग तीरंदाज, कबूतर कब तक दुबके

बिछे जाल पर
बिखरे दाने, ऊपर-नीचे तने निशाने
सांई भी नाराज, कबूतर कब तक दुबके

आसमान में उड़ना
मुश्किल, धरती से भी जुड़ना मुश्किल
अजब गिरी है गाज, कबूतर कब तक दुबके

आगे-पीछे
दायें-बायें, आँख दिखायें दसों दिशायें
दाने को मुहताज, कबूतर कब तक दुबके

घुट-घुट काटे साँझ-
सवेरा, नरक बन गया रैन-बसेरा
गया गुटुरगूँ-राज, कबूतर कब तक दुबके

२३ जुलाई २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter