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अनुभूति में रामदेव लाल ’विभोर‘ की रचनाएँ— 

गीतों में-
कैसे फूल मिले
फूटा चश्मा बूढ़ी आँखें
बाज न आए बाज
भरा कंठ तक दूषित जल है
मैं घड़ी हूँ

 

  मैं घड़ी हूँ

वक्त की चलती लड़ी हूँ
मैं घड़ी हूँ

लूँ न घूँघट का सहारा
चाँद सा मुखड़ा उघारा
मैं खड़ी दीवाल से सट,
   देखती घर का नजारा
     एक खूँटी पर अड़ी हूँ

घरते है लोग मुझको
और बाहर झाँकते हैं
दूसरों की राह देखे
   चाल मेरी आँकते हैं
     उम्र में उनसे बड़ी हूँ

आदतें किसकी न जानी
लटपटी सबकी कहानी
शाह हो अथवा लुटेरा,
   देख ली सब की जवानी
     घनघना कर लड़ पड़ी हूँ

रात-दिन मैं टिकटिकाती।
वक्त पर घंटा बजाती
आ गया बेवक्त कोई,
   मैं उसे भी झेल जाती
     हर समय की फुलझड़ी हूँ

दीन मुझको वर न पाये
क्रय कभी भी कर न पाये
पूछता बस हाल मेरा,
   ला मुझे वह घर न पाये
     देख उसको रो पड़ी हूँ

२३ जुलाई २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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