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अनुभूति में रावेंद्रकुमार रवि की रचनाएँ— 

नए गीतों में- 
गुनगुनी होने लगी है
चाहत का सिंगार

फ़िक्सिंग भी है बहुत जरूरी
रूप तुम्हारा
हँसी का टुकड़ा

बालगीतों में-
अपनी माँ का मुखड़ा

बढ़िया बहुत पसीना
मेरी शोभा प्यारी है
हम भी उड़ते

गीतों में-
ओ मेरे मनमीत
धूप की परछाइयाँ
नाम तुम्हारा
मेरा हृदय अलंकृत
मेरे मन महेश

कार्यशाला में-
कोहरे में भोर हुई

संकलन में-
फागुन- आए कैसे बसंत
होली है- होली आई रे

 

हँसी का टुकड़ा

नथनी की परछाईं पर,
सो रहा हँसी का टुकड़ा!
उसे सुनाकर ख़ुश है लोरी,
गोरी तेरा मुखड़ा!

लट ने चूमा,
उँगली ने छू धीरे से सहलाया!
फिर उसको ओंठों पर धरकर
मेरी ओर उड़ाया!
मेरे पास
पहुँचकर उसने
दूर कर दिया दुखड़ा!


मैंने भी उसके
सुर से सुर लेकर गीत बनाया!
फिर उसको अपनी साँसों की
ख़ुशबू से महकाया!
महक-महककर
चमक आ गई,
दमक उठा है मुखड़ा!

४ अक्तूबर २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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