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अनुभूति में शंभु शरण मंडल की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
तू मतलब का मूसल रे
दरोगा जी
बालकनी में
बेहतर दिन
सजन तुम आ जाओ

गीतों में-
अपनी डफली अपने राग
एक सुबह फिर आई
ऐसे भी कुछ पल
चलो बचाएँ धरती अपनी
ज्योति की खुशी
झूठी झूठी हरियाली
डोर वतन की हाथ में जिसके
डोलपाती
तेरी पाती मिली
नौबजिया फूल
बाल मजदूर
यह तो देखिए
रोटी की चाह
वादों की मुरली

हे कुर्सी महरानी

संकलन में-
नया साल- एक नया पल आए
        - हो मंगलमय यह वर्ष नया
फागुन- आझूलें बाहों में
दीप धरो- ये कैसी उजियारी है
नयनन में नंदलाल- तुम्हीं ने
होली है- फागुन की अगुआई में
हरसिंगार- हरसे हरसिंगार सखी

 

बालकनी में

हम तो अपनी बालकनी में
बाग लगाए बैठे हैं

गमले में है बरगद-जामुन
गमले में ही आम लगे
सच कहते हैं यारों यह तो
हमको चारों धाम लगे
झूठे ही सब जात धरम के
दाग लगाए बैठे हैं

फुलचुही इस बगिया में
पैगाम अमन का देती है
तितली आकर उलफत के
मकरंद यहाँ पी लेती है
इसमें ईद दिवाली क्रिसमस
फाग लगाए बैठे हैं

फूल सदाकत के फूले हैं
इस छोटी फुलवारी में
महक रहा है भाईचारा
हरदम इसकी क्यारी में
दुनियावाले क्यों नफरत की
आग लगाए बैठे हैं

१ अक्तूबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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