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अनुभूति में शंभु शरण मंडल की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
ओ फागुन के मीत
खोलें मन की गठरी कैसे
दिल मेरा बिन बात बसंती
धुनिया
फेंको अपना जाल मछेरा
बरसाने का हाल

गीतों में-
अपनी डफली अपने राग
एक सुबह फिर आई
ऐसे भी कुछ पल
चलो बचाएँ धरती अपनी
ज्योति की खुशी
झूठी झूठी हरियाली
डोर वतन की हाथ में जिसके
डोलपाती
तू मतलब का मूसल रे
तेरी पाती मिली
दरोगा जी
नौबजिया फूल
बाल मजदूर
बालकनी में
बेहतर दिन
यह तो देखिए
रोटी की चाह
वादों की मुरली

सजन तुम आ जाओ
हे कुर्सी महरानी

संकलन में-
नया साल- एक नया पल आए
        - हो मंगलमय यह वर्ष नया
फागुन- आझूलें बाहों में
दीप धरो- ये कैसी उजियारी है
नयनन में नंदलाल- तुम्हीं ने
होली है- फागुन की अगुआई में
हरसिंगार- हरसे हरसिंगार सखी

 

खोलें मन की गठरी कैसे

खोलें मन की गठरी कैसे
बोलें दिल का हाल बटोही

बेदर्दी यह ठाकुर जाड़ा
मारे जोर बदन पे कोरा
आँखों में सहमा बैठा है
दास बना यह प्राण बिचारा

कौन भला काटे इसके
दुर्दिन का यह जाल बटोही

अगहन पूसो माघ कसाई
ज्यों हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई
मानवता की हार कँपाए
बारी बारी तीनों भाई

शीत लहर बन खींच रहे हैं
साँसों की ये खाल बटोही

कहने को आजाद हुए हैं
पर सच में बरबाद हुए हैँ
खुद को सेवक कहनेवाले
जबसे घर दामाद हुए हैं

फटेहाल से रहते थे वो
अब हैं मालामाल बटोही

१५ फरवरी २०१७

 

 

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