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अनुभूति में सोम ठाकुर की रचनाएँ—

गीतों में-
खिड़की पर आँख लगी
मन जंगल के हुए
प्रेमा नदी
सूर्यमुखी फूल
स्वर की तरंगें
वेला संवत्सरा
हवाएँ संदली हैं

संकलन में-
मेरा भारत- तिरंगा
         राष्ट्र देवता
         वंदन मेरे देश
मातृभाखा के प्रति- राजभाषा वंदन

 

प्रेमा नदी

मैं कभी गिरता - सँभलता हूँ
उछलता-डूब जाता हूँ
तुम्हारी मधुबनी यादें लिए
प्रेमा नदी

यह बड़ी जादूभरी, टोने चढ़ी है
फूटती है सब्ज़ धरती से, मगर
नीले गगन के साथ होती है
रगों में दौड़ती है सनसनी बोती हुई
मन को भिगोती है
उमड़ती है अँधेरी आँधियों के साथ
उजली प्यास का मरुथल पिए,
प्रेमा नदी

भोर को सूर्या घड़ी में
खुश्बुओं से मैं पिघलता हूँ
उबालों को हटाते ग्लेशियर लादे हुए
हर वक़्त बहता हूँ
रुपहली रात की चंद्रा-भँवर में घूम जाता हूँ
बहुत खामोश रहता हूँ
मगर वंशी बजाती है मुझे
अपनी छुअन के साथ
हर अहसास को गुंजन किए
प्रेमा नदी

यह सदानीरा पसारे हाथ
मेरे मुक्त आदिम निर्झरों को माँग लेती है
कदंबों तक झुलाती है
निचुड़ती बिजलियाँ देकर
भरे बादल उठाती है
बिछुड़ते दो किनारों को
हरे एकांत का सागर दिए
प्रेमा नदी

२१ मई २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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