अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में यतीन्द्रनाथ राही की रचनाएँ

गीतों में-
अभिसार वाले दिन
आबरू घर की
आँख में
उमर को बाँध लो
कहाँ गए
कुछ रुक लो
ख़त में तुमने भेज दिया
चलो चल दें
झर गए वे पात
दिन गए रातें गईं
दूर देश की चित्र सारिका
मधुकलश मधुमास
सज गई है
हमारे रेत के घर
हो गया है प्राण कोकिल

संकलन में-
होली है-
दिन होली के
       दिन हुरियारे आए

वसंती हवा- आएँगे ऋतुराज
         आए हैं पाहुन वसंत के

 

हो गया है प्राण-कोकिल

हो गया है प्राण-कोकिल
देह-वासंती हुई।

द्वार पर मंगल कलश है
आँगना-रांगोलिका
हाथ-मेंहदी
पाँव-जावक
रत प्रतीक्षा गोपिका
हंस-पाती बाँचती-सी
पुलक-दमयंती हुई।

यों हवा छूकर चली
संकेत में कुछ कह गई
फूटकर रस निर्झरी-सी
छल-छलाकर बह गई
कान में फिर सप्तस्वर
बजने लगे,
घुलने लगे
आवरण सारे सहज
हटने लगे
खुलने लगे
पर न फूटा मौन
ऐसी बात लजवंती हुई
और,
तुम आए
मलय की
शांत शीतल गंध से
प्राण में गहरे उतरते
राग रंजित छंद से
लय-विलय
होते गए हम
द्वैत से अद्वैत में
स्वर्ग अपने रच लिए थे
पत्थरों में
रेत में
भोर-रूपा
साँझ-सोना
रात-मधुवंती हुई।

९ जून २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter