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श्यामू शास्त्री के 
भुज–भूकंप हाइकु

 
 

  भूकम्प आया 
भ्रष्टाचार खुल गया 
भारतीयों का

ढूह, शरीर
चीत्कार आँसू, बस
जीवन न था

जहाँ देखते
रोज़ हलचलें
सन्नाटा है 

चला गया जो 
कुछ भी नहीं लौटेगा
फिर भी आशा
  द्वार दीवार
कुछ भी नहीं बचा
नश्वर घर

देर तलक
प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा
अन्तहीन

सहायता, है
दर्द दीन दुनिया 
किसके लिये?
 

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