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कुछ और हँसिकाएँ

टेढ़ी
अनुकम्पा के नये रूप देखे
जितने चूहे शेर हुए थे
दृष्टि वक्र होते ही/
ढेर होते देखे


परिणति
शेर और बकरी जब, एक ही घाट पर
पानी पियें तो-पानी रंग लाता है
बकरी गुर्राती है-शेर मिमियाता है।


भोजन
भूखे भजन न होहि गोपाला...
नारे लगाती आ रही थी जो
चुनावी टोली -
किसी ने लाठियाँ खाई-किसी ने गोली


प्रत्युत्तर
रावण ने आटा लेने के लिए
भिखारी का रूप धारण किया
श्रीराम ने उसे-
आटे दाल का भाव बता दिया


धारणाएँ
तथाकथित संतों महन्तो ने
धारणाएँ बदल दीं-मुहावरों पर गाज गिरी
मुँह में राम-राम-
बगल में छप्पन छुरी


कोटि
वे बताने लगे
कोटि चरणों में श्रद्धानत हुए
किन्तु सम्मुख चरणों की कोटि देखी
तो सिर उठाने लगे

२१ फरवरी २०११

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