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अनुभूति में रजनीश कुमार गौड़ की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
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सवाल

क्षणिकाओं में-
नौ क्षणिकाएँ

 

सवाल

कब्रिस्तान मे हुक्का पीते पिशाच
चलते फिरते मुर्दो के
अंतर्मन को टटोलते हैं
जहाँ सवालों के कुछ
अदभुत बागीचे हैं
ना जाने कौन सींचता है इन्हें
किस सूरज की रोशनी में
सदा हरे भरे रहते है।
ना त्रिकोणमिति ना कोई क्षितिज
मापने का पैमाना भी तो हो
चिड़िया के घोंसले जैसे बुने
घरों की चौखट पर
बंदनवार से टँगे
सच्चे या झूठे
अच्छे या बुरे
सुर्ख गुलाब की कटीली झाड़ियों से
हमदम है हरकदम है
तन्हाई हो या महफिल
अटूट सबंधो का
संसार बसाते सवाल।
रोक सका भला कोई
इन मदमस्त हाथियो को
जबाबों की अल्पसंख्यक
बस्तियाँ रौंदने से?
कहाँ ठिठक गया
तेजस्वी अभिमन्यु
छिन्न भिन्न जो कर सके
होठों पर पहरा देते
ओर
आँखों में पल पल तैरतै
इन सवालों के चक्ररव्यूह को।

८ अक्तूबर २००२

 

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