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अमलतास और भूत





 
पीली छतरी वाला प्यारा अमलतास
याद है आता मुझको बार-बार
जुड़ी हैं उससे बचपन का यादें
मेरे जीवन की यादें।

पाठशाला से घर की दूरी थी थोड़ी
मज़े से चली जा रही थी बच्चों की टोली
नीचे पगडंडी, ऊपर अमलतास की छतरी

अचानक! डराया था मित्रों ने ऐसे
होते हैं भूतों के बसेरे इन पर
भूतों की टाँग लटकती दिखाई थी
बिना देखे ही सरपट दौड़ लगाई थी मैंने।

रो-रो के घर में किया था हंगामा
दूसरे ही क्षण में माँ ने हाथ थामा।
ले पहुँची पेड़ तले, दिखाया पेड़ सारा
न था भूत, न भूतों की टाँग
ये तो सब थे पेड़ के भाग
बाल मन से भूत की दहशत को निकाला।

देखती हूँ आज जब सुनहरे अमलतास को
खड़ी हो अकेली, अकेली, अकेली
माँ तो चली गई है
पीली-पीली आग की लपटों के सुनहरे रथ पर
छोड़ कर हमको पीली छतरी वाले अमलतास के नीचे

सुषमा श्रीबास्तव
16 जून 2007

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