अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

जीवन रहे अशोक
 

कल अशोक से हुई हमारी
मोबाइल पर बात

कैसे हो बतलाओ
सुनकर भर्रायी आवाज़
कालिदास तो रहे नहीं अब
कौन कहे सरताज
दुख का रोना रोने वाले
पूछ रहे हालात

पुष्पों का रस पीने वाले
दिखा रहे हैं पीर
कामी-नामी करें तमाशा
लिये खड़े शमशीर
कन्दर्पी उपमाएँ देकर
जलते सारी रात

बदली होगी दृष्टि तुम्हारी
बदले होंगे वंश
राजमहल से झोपड़ियों तक
रहा मिटाता दंश
सुख के बदले दुख देते हो
करते हो आघात

शोक मिटाना मूल सदा से
नहीं मनाता शोक
छोड़ विषाद हर्ष में जीना
जीवन रहे अशोक
सीता के चरणों मे नत हूँ
जग को देता मात

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'  

१ अगस्त २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter