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बाँस
 

हम तो बाँस हैं,
जितना काटोगे, उतना हरियाएँगे
हम कोई आम नहीं
जो पूजा के काम आएँगे
हम चंदन भी नहीं
जो सारे जग को महकाएँगे
हम तो बांस हैं
जितना काटोगे, उतना हरियाएँगे
बाँसुरी बन के,
सबका मन तो बहलाएँगे,
फिर भी बदनसीब कहलाएँगे.
जब भी कहीं मातम होगा,
हम ही बुलाये जाएँगे,
आखिरी मुकाम तक साथ देने के बाद
कोने में फेंक दिये जाएँगे.
हम तो बाँस हैं,
जितना काटोगे, उतना हरियाएँगे.

- राजेश्वर पाठक
१८ मई २०१५

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