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मेज पर विराजता
 

सुनते हो भाई
बगिया में
बाँस की डरैया
फिर फूल आई!

उजड़ी बंसखंडी
अँगड़ाई ले कर
उठी है मुँह भर
जमुहाई!

अमुआ के आगे
बाँसों का वन है
पीछे बरस रहे
कूँच भरे महुये
पके पके कैथों की
भीनी भीनी खुशबू
नकुआ महकाये
सूँघ रहे कहुये

ऊँचे बाँसों की
फुनगी बेड़िन
के जैसे नाच
रही राई!

चौपालों के चुनगुन
भगोरिया पँतरोई
मालिन गिलहरी
मैना सी चहके
छू छू के गुड़हल की
कलियाँ अनबोलन
ठिठोली पाँव
भौंरों के बहके

प्राण बसे बंसवट
की रीझी लगती
तितिलियाँ, गईया
लवाई!

- भोलानाथ
१८ मई २०१५

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