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बाँसपुर में
 
बाँसपुर में देखिए तो
नित्य मेला है

लग्न-रस्मों के ठहाके
गूँजते रहते
शोकमय वैराग्यवाले
अश्रु भी बहते
बालपन, किलकारियों का
मस्त रेला है

आवश्यकता शिल्पकारों को
लुभा लेती
कल्पना की अनगिनत
हाटें सजा देती
मुस्कुरातीं सजगताएँ
कर्म-बेला है

ढूँढते औषध यहाँ मिलते
कई अक्सर
दीखते कितने जिन्हें अपना
बनाना घर
भोर, दुपहर, साँझ चलता
ये ही खेला है

- कुमार गौरव अजीतेन्दु
१८ मई २०१५

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