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वेणु वन में
 
मृदु पारदर्शी
गंध सी तिरने लगी
फिर किसी ने याद
भूले से किया

बाँस के उन झुरमुटों
में खो गए थे
छोर कुछ स्वप्निल
कथाओं के

वेणु वन में
बाँसुरी बजने लगी
इस तरह अंतस
किसी ने छू लिया

मिट गए विछोभ के
आवर्त मन के द्वीप से
एक मोती ने
लिया है जन्म
सुधि की सीप से

साँझ फिर से
मोर पंखी हो गयी
और तुलसी पर
जला नन्हा दिया

छँट गया है
धुँधलका अवसाद का
उगने लगा अँकुर
सहज विश्वास का

स्वप्न वसना
चाँदनी हँसने लगी
एक मोहक पल
अपरिभाषित जिया

- डॉ मधु प्रधान
१८ मई २०१५

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