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देवदारों के लिये
 

है जरूरी सींचना, इन देवदारों के लिए।
अब तो होगा जागना, इन देवदारों के लिए।

हैं पड़े झुलसे सभी वन, सूर्य के अनुताप से
अब पड़ेगा देखना, इन देवदारों के लिए।

क्यों लगी है आग, जल कर खाक हैं हिम चोटियाँ
कुछ तो तुम भी बोलना, इन देवदारों के लिए।

एक चिंगारी है काफ़ी, राख़ में बदले फिजा
आग को तुम रोकना, इन देवदारों के लिए।

ये फिजा कितनी हसीं है, कैसे अब मिल पायेगी
इस ज़मीं को चूमना, इन देवदारों के लिए।

आज 'आभा' ने उठाई है, कसम सोचा बहुत
आप ज़ज़्बा देखना, इन देवदारों के लिए।

- आभा सक्सेना
१५ मई २०१६

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