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पिता तुल्य देवदार
 

पिता तुल्य ये देवदार हैं

सिखलाते गुरुवर से हमको
सदा लक्ष्य छूना है नभ को
अचल अडिग नित हरित धरा पर
शीत बर्फ भय निराधार हैं

तेज़ धूप निज सिर सह लेते
छान रौशनी पथ में देते
फैला बाँहें खग पिक आश्रय
डाल-डाल उनसे गुंजार हैं

मंद पवन सुगंध ले बहती
छाल काष्ठ में औषधि बसती
कल्पवृक्ष सम हैं अति पावन
देवों के प्रिय देवदार हैं

- ज्योतिर्मयी पंत   
 
१५ मई २०
१६

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