अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

देवदारु कानन में
 

सुरभित देवदारु कानन में
बहक गया मन
हिरना

हुलसित हिरदय रोम-रोम से
फूट रहा उल्लास
पद चापें संगीत छेड़तीं
नाच रही है घास
शिखरों से ऊँचे वृक्षों में
पैदा हुई थिरकन
जाने यह क्या करना चाहे
हुआ बावरा मन

हिरदय के उत्सित कोने से
बह निकला इक
झरना

हवा बाँचती हौले-हौले
पत्तों के सन्देश
किसने क्या-क्या लिखा विरह में
कौन गया परदेस
धरती में मच रही खलबली
आसमान है मौन
व्याकुल चीड़-वनों में जाकर
धीर बँधाए कौन?

मुँह लटकाए खड़ी धूप भी
जाना चाहे
घर ना

- पवन प्रताप सिंह 'पवन'  
 
१५ मई २०
१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter