अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

कचनार- तीन मुक्तक





 
एक

दिल तुम्हारा था हमारी देह में
और अपना था तुम्हारे नेह में
बात उपमा की चली तो क्या बताएँ
हर तरफ़ चर्चा हुई कचनार की

दो

जब दुखों की धूप ने सोखा बदन
और उसको छू गई तपती पवन
आ गईँ लेकर तुम्हारी भावनाएँ
लहलहाती डालियाँ कचनार की

तीन

कब न जाने कौन क्या कुछ कह गया
प्रेम का धागा उलझ कर रह गया
गुत्थियाँ खोलें तुम्हारी कामनाएँ
औषधि का रूप ले कचनार की

पवन चंदन
१६ जून २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter